पूजते है देवी बना जिसे, नवरातो में,
वही सुरक्षित नहीं इन्सानी हाथो में।
कहा रखे इन्हे छुपाकर,
रबर की गुड़िया नहीं जिसे टांग दे खुटी पर।
सर्म करो कुछ अपनी नजर का,
कैसे जी पाओगे खुद अपनी ही नजर में।
होती है राजनीती इन मुददो पर अक्सर ,
गिरता जा रहा इंसान का ज़मीर बद्तर।
मत पूजो उसे भले देवी बना ,
बचा लो बस उसकी अस्मिता।
लिया है जन्म गर इंसान का ,
तो खुद को बस इंसान बना।
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